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Бхагавад-гита как она есть В процессе << 12 - Преданное служение >>
<< стих 3-4 >>
ये तव अक्षरम अनिर्देश्यम अव्यक्तं पर्युपासते सर्वत्रगम अचिन्त्यं च कूटस्थम अचलं धरुवम संनियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः ते पराप्नुवन्ति माम एव सर्वभूतहिते रताः
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