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Бхагавад-гита как она есть В процессе << 12 - Преданное служение >>
<< стих 13-14 >>
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च निर्ममॊ निरहंकारः समदुःखसुखः कषमी संतुष्टः सततं यॊगी यतात्मा दृढनिश्चयः मय्य अर्पितमनॊबुद्धिर यॊ मद्भक्तः स मे परियः
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